प्रतियोगिता हेतु
शीर्षक -बरसात (वर्षा -ऋतु )
वर्षा सुन्दरि!जब आ जाती है
छन -छन पायल छनकाती है
ले स्वर्ण -कलश अमृत से पूरित
दोनों हाथों छलकाती है
अपने काले अलकों को वह
जब इधर-उधर फहराती है
घन घहर -घहर करने लगता
चपला चम -चम कर जाती है
सर -सर समीर तब आ करके
वर्षा जी को टहलाता है
उत्तर, पूर्व या पश्चिम, दक्षिण
किसी दिशा में ले जाता है
जब अमृत रस नभ से गिरता
तृषिता वसुधा होती मुदिता
टिप -टिप - पड़ती नव बूंदों से
सरिता का घट भर जाता है
चातक ,पपिहा , दादुर, किसान
होता प्रमुदित सागर महान
पिहु -पिहु गायन के साथ सुनो
नृत्य शिखि नित करता है
स्वरचित व मौलिक
डाॅ. उषा कनक पाठक
मिर्जापुर उ.प्र.
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