सोमवार, 13 जुलाई 2020

उषा कनक पाठक

   प्रतियोगिता हेतु 
शीर्षक -बरसात  (वर्षा -ऋतु )
    वर्षा सुन्दरि!जब आ जाती है 
    छन -छन पायल छनकाती है 
    ले स्वर्ण -कलश अमृत से पूरित 
     दोनों हाथों छलकाती है 
                 अपने  काले अलकों को वह
                  जब इधर-उधर फहराती है 
                  घन घहर -घहर करने लगता 
                   चपला चम -चम कर जाती है 
    सर -सर समीर तब आ करके 
    वर्षा जी को टहलाता है 
   उत्तर, पूर्व या पश्चिम, दक्षिण 
  किसी दिशा में ले जाता है 
                     जब अमृत रस नभ से गिरता 
                     तृषिता वसुधा होती मुदिता 
                     टिप -टिप - पड़ती नव बूंदों से 
                     सरिता का घट भर जाता है  
चातक ,पपिहा , दादुर, किसान 
होता प्रमुदित सागर महान 
पिहु -पिहु गायन के साथ सुनो 
नृत्य शिखि नित करता है 
स्वरचित व मौलिक 
डाॅ. उषा कनक पाठक 
मिर्जापुर उ.प्र. 

        

      
                 
                   
  

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