शनिवार, 11 जुलाई 2020

शिखर चन्द्र जैन

तुकान्त कविता शीर्षक आदमी।                     

अंदर का दर्द कोई , ना देख ले समझ ले।       
करता है ढोंग हरदम , हंसने का आदमी ।

आंसू नहीं हैं कोई  ,न सिसकियां सुनाएं ।
दिखता नहीं किसी को , रोता है आदमी ।

न है दिया न वाती ,पर लौ है टिमटिमाती ।
स्नेह तेल सूखा , बुझता है आदमी ।।

पराये  तो हैं पराये , अपनों के जख्म से ।
कब कब और कितनी बार, मरता है आदमी।

बन्दूक है न गोली , न तीर है न भाला । 
संघर्ष की लड़ाई , लड़ता है आदमी ।

भूला है आत्मा को , पाने को हर ऊंचाई ।
कैसा भी काम कोई ,करता है आदमी ।

सृष्टि की है ये रचना ,नर नारी अन्य प्राणी ।
सामाजिक बंधनों में ,  जकड़ा है आदमी ।

कितना भी कुछ भी कर ले , आखिर में देह ये तो ।
एक दिन जले चिता में ,कोई हो आदमी ।

रचनाकार
शिखर चंद जैन " शिखर " गंज बासौदा
 9425615029

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