शनिवार, 11 जुलाई 2020

मनु बदायुनी

दोस्तों एक ग़ज़ल आपके लिए 

वो मेरी नींद पर कब्ज़ा जमाकर बैठ जाती है 
तुम्हारी याद क्यों बिस्तर पे आकर बैठ जाती है 
 Vo meri nind pr kabza jmakr baith jati hai
Tumhari yaad kyun bistar pe aakar baith jati hai

मुझे जब लगने लगता है की मैं हूँ जीतने वाला 
नये मुहरे ये किस्मत फिर सजाकर बैठ जाती है 
Mujhe jb lagne lagta hai ki mai hun jeetane bala 
Naye muhre ye kismat fir sajakar baith jati hai 

सियासत झट पकड़ लेती है जुगुनू कैसे चमका था
जिधर सूरज हो वो चश्मा लगाकर बैठ जाती है 
Siyasat jht pakad leti hai jugnu kaise chamka tha 
Jidhar suraj Ho bo chashma lagakar baith jati hai

कहाँ का इश्क़ मेरा अब तो बस इतना सा  है किस्सा  
है उठती हूक दिल में कसमसाकर बैठ जाती है 
Kahan ka isq mera ab to bs itna sa hai kissa 
Hai uthati hook dil me kasmsakar baith jaati hai

शज़र तो कट गया लेकिन वो चिड़िया भूल ना पायी
वहीं पर वो किसी पत्थर पे जाकर बैठ जाती है
Shazar to kat gaya lekin vo chidiya bhool na payi
Vahin pr vo kisi pathar pe jakar baith jati hai

                 मनु बदायूँनी Manu Budayuni(copy right)

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