नमन साथियों
13/7/2020/सोमवार
#संस्कृति,संस्कार#
काव्य
संस्कृति संस्कार भारतीयता
अब कहीँ विलुप्त हो रही है।
जैसे वही पश्चिमी संस्कृति ,
भारत में उन्मुक्त हो रही है।
भूले सब संस्कार हम अपने।
न भजन कीर्तन माला जपने।
नहीं करते भगवन का वंदन,
निजी सभ्यता हो गए सपने।
क्या खोया और क्या पाया है।
न गीत संस्कृति का गाया है।
सब नाते रिश्ते भूल गए हम ,
खान पान विदेशी भाया है।
नहीं चरण वंदना करते कोई।
न मेलमिलाप से रहते कोई।
अर्धनग्न सा हुआ पहनावा,
न प्रेम प्यार ही रखते कोई।
स्वरचित ः
इंंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जयजय श्री राम राम जी
#संस्कृति, संस्कार, सभ्यता#काव्यः
13/7/2020/सोमवार
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें