~~~ कुंडलियाँ~~~
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सावन मास सुहावना,
हरियाली चहुँओर।
विपिन खिले सरिता बहें,
है श्रावण चितचोर।।
है श्रावण चितचोर,
घटाएं उमड़ रही हैं।
लिए पवन उनचास,
दिशाएं बिगड़ रही हैं।।
कोयल गाती राग,
हुआ मन अतुलित पावन।
नभचर करें बिहार,
विमोहित करता सावन।।
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मृगमद सुरभि सुगंध प्रिय,
करती मन आधीन।
आल्हादित पर्यावरण,
किसलय हुए नवीन।।
किसलय हुए नवीन,
बिरह वर्षा का टूटा।
घन घन बरसे मेघ,
ताप गरमी का छूटा।।
कंचन सा परिवेश,
देखकर जनमन गदगद!
धुलती नही सुगंध,
मिला है ऐसा मृगमद।।
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★ विकास शुक्ल प्रचण्ड★
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