शुक्रवार, 10 जुलाई 2020

ज्योत्स्ना रतूड़ी

🙏नमन मंच🙏
दिनांक-8/07/2020
वार- बुधवार 
                +छूट गया ममता का आंचल+
छूट गया ममता का आंचल,
उठ माँ चल जल्दी घर  चल,
कल तक तुझे बहुत देर थी,
घर पहुचने की कोताही थी।

यहाँ कौन है मेरा अपना,
समझे जो मेरा बचपना,
क्या हुआ है तुझे मेरी माँ,
उठना चल जल्दी घर चलना।

अन्जानी सब सूरत लगती 
मुझको तो माँ डर है लगती,
डर रहा हूँ सबको देखकर,
मुझे सूरत तो तेरी ही प्यारी लगती।

भूख लगी है मुझको भारी 
उठ दूध पिला दे अब तो प्यारी,
बोलूं किसे मै नही जानता,
समेट लो तुम अब अपनी सारी।

कौन मुझे गोदी में लेगा,
कौन मुझे अब खाना देगा,
जाना है अभी तो बहुत ही दूर,
कौन मुझे अब घर पहुँचायेगा।

माँ नींद नहीं आती है तुझ बिन,
सोया नहीं ना मै कभी तेरे बिन,
उठ जा अब  गोदी में   ले   ले,
प्यार से सिर पर हाथ तो फेर ले।

पता तुझे अन्धेरे से डरता हूँ,
तेरे  हाथ   से   ही   खाता हूँ,
क्यों सोई तू माँ जमीन पर,
मैं   तुझे   इक   पप्पी दे दूँ ।

क्या हुआ होगा मेरी माँ को,
कोई  तो   उठा  दो माँ को,
रो रो के  मै  थक  गया हूँ
देखा नहीँ कभी देर तक सोते माँ को।

मैं बच्चा कितना मजबूर,
लोग बने हैं सब मगरुर,
बढ़ जाते कोई हाथ जो आगे,
बच जाती मेरी माँ तू जरूर।

पता तुम्हे क्या माँ खोने का,
माँ की ममता से वंचित होने का,
मेरा तो जीवन ही बदल गया अब,
माँ   तू   छोड़   गई   मुझे    जब।

स्वरचित (मौलिक रचना)
ज्योत्सना रतूड़ी (ज्योति )
उत्तरकाशी ( उत्तराखण्ड)

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