*गाय माता* *( चंचला छन्द )*
है समस्त श्रष्टि की सुरम्य ज्योति का प्रकाश,
कोटि कोटि देव अंग अंग में करें निवास।।
गाय गाय राग आज गाय-जाति का महान,
तान दो स्वमातु के गुणानगान का वितान।
गम्य है सुलभ्य कूप ईश का सुधा समान,
जीव जन्तु के असाध्य रोग का जहाँ निदान।।
जानते इसे मनुष्य विज्ञ वो न हों निराश
कोटि कोटि देव अंग .....
भद्र है पवित्र ये सजीव के लिये बिधान,
जो सभी चिकित्सकीय युक्ति शक्ति का निधान।
पंचगव्य दुग्ध,मूत्र, घी,दही व गोबरादि,
औषधी समान ही हरें समस्त आधि व्याधि।।
शुद्ध प्राणवायु हो जहाँ करे सदा प्रवास,
कोटि कोटि देव ......
पालते मनुष्य जो स्वगेह बीच गो समाज,
मेटते बिषाणु का समीर से वहाँ कुराज ।
स्रोत है सुरम्य दिव्य द्रव्य दुग्ध का विशिष्ट,
जो पिये सुजान तेजवान हो बनें बलिष्ट ।।
ये रहे वहाँ कुयोग आ सके न आस पास
कोटि कोटि देव अंग....
रक्त चाप के मरीज हाथ पीठ पे फिराय,
स्वस्थ हो शरीर दूर रोग दें सभी भगाय ।
कामधेनु भूमि की करे समस्त पूर्ण काम
गो गुणादि गान में न हो सके कभी विराम ।
मातु मानते इसीलिये मनुष्य खास खास
कोटि कोटि देव अंग अंग में करें निवास।।
*उदयराजसिंह एड.*
*हरदोई उ.प्र.*
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