शुक्रवार, 10 जुलाई 2020

डॉ लक्ष्मी नारायण बुनकर

गीत  नदिया बीच नाव नही ठहरे,सागर चले हिलोर है।माझी कैसे पार उतारे तूफानों का जोर है।। खड़ा हिमालय देख रहा है,विगलित अपनी चोटियां।जहाँ- तहाँ सब सेंक रहे हैं,अपनी अपनी रोटियां।दुश्मन जाल लिए फिरते हैं,जिसकी लंबी डोर है।माझी कैसे पार उतारे तूफानों का जोर है।।  आजादी के नारों में खो गई हमारी आजादी।आबादी आबादों की है,बाकी तो है बर्बादी।देशवासियों सुनो देश का रुख जाने किस ओर है।माझी कैसे पार उतारे ,तूफानों का जोर है।।   मानव आज बढ़ा है आगे मानवता को छोड़कर ।फूलों की आशा करता है,कच्ची कलियाँ तोड़ कर।चमन की रक्षा कौंन करेगा,खुद ही अपना चोर है।माझी कैसे पार उतारे तूफानों का जोर है।।   सारे कंकड़ पत्थर कांटे ,साफ हमें ही करना है।रहना है समता से सबको नहीं किसी से डरना है।सघन तिमिर को दूर हटाकर लानी हमको भोर है।माझी कैसे पार उतारे तूफानों का जोर है।।   डॉ लक्ष्मी नारायण बुनकर विभागाध्यक्ष,हिंदी शासकीय स्नातकोत्तर महा विद्यालय गुना मध्य प्रदेश

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