*हर शक्स परेशान क्यूं है*
आंखों में आसूं, फिर भी होटों पर मुस्कान क्यूं है,
क्यूं दोहरी ज़िन्दगी जीते हैं हम, आखिर हर शख़्स परेशान क्यूं है
गुलशन है सफर ज़िन्दगी का अगर,
तो फिर इसकी मंज़िल शमशान क्यूं है
आखिर हर शख़्स परेशान क्यूं है
जब जुदाई है प्यार का मतलब,
तो फिर प्यार करने वाला इतना हैरान क्यूं है
आखिर हर शख़्स परेशान क्यूं है
अच्छा कर्म करना है ज़िन्दगी है अगर,
तो फिर बुराई का रास्ता इतना आसान क्यूं है,
आखिर हर शख़्स परेशान क्यूं है
अगर जीना ही है मरने के लिए,
तो फिर ज़िन्दगी एक वरदान क्यूं है,
आखिर हर शख़्स परेशान क्यूं है
कभी ना मिलेगा जो, उससे ही लग जाता है दिल,
कमबख्त ये दिल इतना नादान क्यूं है,
आखिर हर शख़्स परेशान क्यूं है
नेहा सक्सेना
शिवपुरी म. प्र.
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