सोमवार, 13 जुलाई 2020

डॉ नमृता फुसकेले

छंद मुक्त कविता
 
             मृत्यु भोज

मृत्यु भोज है दर्द और ऑसूओं से भरा भोजन
बह रहे ऑसू किसी विधवा के 
बह रहे ऑसू अबोध बालक के
बह रहे ऑसू बेटे की मॉ के 
बह रहे ऑसू दुखी इंसानों के 
हर तरफ चीत्कार है
चँहुओर ऑसूओ की बारिश है
चीख ,दर्द और ऑसू है इस भोजन में
न करो भोजन दुखियों के घर
सान्तवना दो दुखियों को  
कौनसी रीति है मृत्यु भोज की 
मानव द्वारा बनाई गई कुरीति
करो कुरीति का जड़ से नाश
कहलायेगे हम इंसान 
इंसानियत नहीं है मृत्यु भोज 
कर्ज से दब जाते इंसान
जाने वाला चला गया
वह तो जीते जी मर गया
बन्द करो मृत्यु भोज को 
कलंक है इंसानियत के नाम का 

डॉ नमृता फुसकेले 
सागर (म प्र)

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