छंद मुक्त कविता
मृत्यु भोज
मृत्यु भोज है दर्द और ऑसूओं से भरा भोजन
बह रहे ऑसू किसी विधवा के
बह रहे ऑसू अबोध बालक के
बह रहे ऑसू बेटे की मॉ के
बह रहे ऑसू दुखी इंसानों के
हर तरफ चीत्कार है
चँहुओर ऑसूओ की बारिश है
चीख ,दर्द और ऑसू है इस भोजन में
न करो भोजन दुखियों के घर
सान्तवना दो दुखियों को
कौनसी रीति है मृत्यु भोज की
मानव द्वारा बनाई गई कुरीति
करो कुरीति का जड़ से नाश
कहलायेगे हम इंसान
इंसानियत नहीं है मृत्यु भोज
कर्ज से दब जाते इंसान
जाने वाला चला गया
वह तो जीते जी मर गया
बन्द करो मृत्यु भोज को
कलंक है इंसानियत के नाम का
डॉ नमृता फुसकेले
सागर (म प्र)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें