सोमवार, 13 जुलाई 2020

रतन सिंह सोलंकी

एक गीत


फूट रहे शब्दों के अंकुर,
देखो मधुर जुवान से।
कविता के रोपे उग आए,
दिल के इस उद्यान से।


हर कोपल में भाव छिपे हैं,
कुछ खट्टे कुछ मीठे।
रोज छिड़कता इन पर यारों,
मैं अनुभव के छींटे।
आँख से झरते आँसू कभी,
दिल खिलते मुस्कान से।
कविता-----------/


तुलसी मीरा सूर कबीरा,
निश दिन गाऐ जाते।
इनके साहित्य को पढ़कर,
लोग धन्य हो जाते।
इनकी कलम से निकलाअक्षर,
मुझे लगे सोपान से।
कविता-----------//


हे अथाह सागर साहित्य का,
मोती तुम चुन लीजो।
हे ज्ञान की ये साधना,
साधक बन कर लीजो।
खूब सजाओ और संवारो,
शब्द ना हो बेजान से।
कविता-----------///


वर्तमान लिख जाओ ऐसा,
याद करे जिसको जन जन।
इतिहास की बनें धरोहर,
भविष्य का हो दर्पन।
जो भी पढ़े गुनगुनावे,
रतन बढ़े सम्मान से।
कविता-----------_////

रतनसिंह सोलंकी हरदा।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

वासुदेव अग्रवाल नमन जी द्वारा सवैया विधान

 वासुदेव अग्रवाल नमन तिनसुकिया ने सवैया छंद का विधान बहुत ही सरल तरीके से समझाया है । सवैया छंद विधान सवैया चार चरणों का वार्णिक छंद है जिसक...