शुक्रवार, 10 जुलाई 2020

भरत मल्होत्रा

हंसता  हूँ  तो  आँखों  में  नमी  महसूस होती है 
न जाने दिल को क्यों तेरी कमी महसूस होती है
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सुनाओ मत महफिल में तुम अपने दर्द के किस्से 
किसी के गम से लोगों को खुशी महसूस होती है
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नहीं  है  तू  कहीं  मेरे  खयालों के सिवा हमदम 
फिर क्यों हर तरफ तू हर घड़ी महसूस होती है
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कुछ ऐसे ज़ख़्म होते हैं जो भर तो जाते हैं लेकिन 
खलिश उनकी हमें ता-ज़िंदगी महसूस होती है
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झुक जाए किसी का भी सर ख़ुद ही बंदगी में 
तेरे  चेहरे  पे  वो  पाकीज़गी  महसूस  होती  है
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आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।

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