शुक्रवार, 10 जुलाई 2020

यतीश अकिंचन

🙏 *कीचक-वध*🙏
🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥

मङ्गलाचरण -१
🔅🔅🔅🔅
शारदे माँ शारदे माँ!
शारदे माँ शारदे माँ!


सिद्धि-सुख दे शारदे माँ!
भक्ति का संसार दे माँ!
मुझ अकिञ्चन पर दया दे!
भाव-निर्झरिणी बहा दे !


बुद्धि की वरदायिनी माँ!
प्राज्ञ-मेधा दायिनी माँ!
मूढ़-मन को ज्ञान दे दो!
काव्य का वरदान दे दो!


खिन्न अन्तर में प्रभा दो!
कर्म-कौशल की शुभा दो!
लेखनी में सार दे दो!
शब्द का उपहार दे दो!
 

छन्द-कौशल की कलाओ!
लेखनी में आ समाओ।
शब्द-समिधा को जुटाओ।
यज्ञ कविता का कराओ।


लय-मलय भाषा-विभूषण
काव्य-कलिका के प्रपूषण
रस भरा अरविन्द-उपवन
शिल्प स्वर्धुनी सा निरञ्जन


 कल-कलल कवितापगाओ!
सींचती साहित्य आओ
तप्त मन, दो धार शीतल
तृप्ति का जल, सत्य का बल


 नभ-नयन नत हो गये हैं।
कालिमा में खो गये हैं।
निन्द्य-निशि गहरा रही है।
निज पतन को जा रही है।


भोर-दृग खुलने लगे हैं।
ओस से धुलने लगे हैं।
अर्चियाँ आने लगी हैं।
हेम-छवि पाने लगी हैं। 


बाल-रवि दिनमान बनकर।
ओह! तमरिपु तान तनकर।
लोकमङ्गल गान गाती।
पुण्य-प्रण कविता सुनाती।

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
मङ्गलाचरण-२
🔅🔅🔅🔅


हे शारदे! वरदायिनी! शुभ—दे! महाश्वेता हरे!
शब्दायिनी! निज पुत्र पर कर, दो दया कविता करे।
श्री जानकी-वल्लभ! विभो! प्रति—रोम मर्यादा बहे।
चत्वारि पौरुष निष्ठ मन से, हर्षमय करता रहे।



तत्वज्ञ-चक्राधीश!सरसिज-दृष्टि से सरसाइये
पाठक! अकिञ्चन-काव्य-कानन के विहारी आइये!

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🌸🌻🌼🌸🌺🌹💐
यतीश अकिञ्चन

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