शुक्रवार, 10 जुलाई 2020

सुरेंद्र शर्मा सागर

एक_ग़ज़ल।

यूं न भीगो खुले आसमां में सनम,
बादलों का कहीं दिल मचल जाए ना।
ये जो दिल है हमारा भी कुछ कम नहीं,
देखकर झट से मंजर फिसल जाए ना।।
पास आ जाइए दूर क्यों हो खड़े,
साथ चलते हैं कुछ दूर ऐ जानेजां।
देखकर साथ मेरे तुम्हें लग रहा,
ये जमाना बिना आग जल जाए ना।।
अब लो पुरवाई चलने लगी जोर से,
बूंदें रिमझिम बदन को भिगोने लगीं।
इस शहर की फ़िजां तो बदल ही गई,
देखिए लोगों का मन बदल जाए ना।।
कब से छतरी लिए मुंतज़िर हैं खड़े,
बेकरारी मिटे चैन दिल को मिले।
बेसबब वक्त यारा न जाया करो ,
वक्त रुकता नहीं ये निकल जाए ना।।
इतना मगरूर होना भी अच्छा नहीं,
और भी हैं हसीं आप ये जान लें।
हुश्न तुमको दिया है खुदा ने जो ये,
हाँ यकीनन ये इक रोज ढल जाए ना।।
(सुरेंद्र शर्मा सागर)
श्योपुर मध्यप्रदेश

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