-अर
रदीफ़ -हैं
2122 1212 22
ग़ज़ल
*देखना मत* यहाँ जो *मंज़र* है
*हाथ मे हर बशर के* खंजर है
फूल बनकर *महक रहा था जो*
आज लगता मुझे वो *पत्थर* है
*हाँ नदी* ही उफन *गयी होगी*
हद नही *भूलता* समन्दर है
इस जहाँ में फ़क़ीर रहते हैं
*हर बशर* ही यहाँ कलन्दर है
प्यार करता जिसे *हूँ मैं यारों*
यार मेरा वही सितमगर है
हाल दिल का *तभी तो लिखता हूँ*
दर्द दिल का धरम सुखनवर है
धरम सिंह
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें