शुक्रवार, 10 जुलाई 2020

धर्म सिंह

-अर
रदीफ़ -हैं
2122 1212 22
   ग़ज़ल 
 *देखना मत* यहाँ जो *मंज़र* है
 *हाथ मे हर बशर के* खंजर है

फूल बनकर *महक रहा था जो* 
आज लगता मुझे वो *पत्थर* है

 *हाँ नदी* ही उफन *गयी होगी* 
हद नही *भूलता* समन्दर है

इस जहाँ में फ़क़ीर रहते  हैं
 *हर बशर* ही यहाँ कलन्दर है

प्यार करता जिसे *हूँ मैं यारों* 
यार मेरा वही सितमगर है

हाल  दिल का *तभी तो लिखता हूँ* 
दर्द दिल का धरम सुखनवर है

धरम सिंह

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