वर्षा ऋतु
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वर्षा ऋतु की बात निराली ।
सबने अपनी प्यास बुझाली ॥
सारे ताल तलैया भीगे ।
आँगन और अंगनइया भीगे ।
झूम रही है डाली डाली ॥
वर्षा ऋतु की बात निराली ।
सबने अपनी प्यास बुझाली ॥
मेंढकों ने ली है मीठी तान ।
पपीहे ने गाया मीठा गान ।
किसानों की आयी दिवाली ॥
वर्षा ऋतु की बात निराली ।
सबने अपनी प्यास बुझाली ॥
मेघों ने उपहार दिया है ।
वसुन्धरा ने शृंगार किया है ।
प्रकृति ने ओढ़ी चादर , हरियाली ॥
वर्षा ऋतु की बात निराली ।
सबने अपनी प्यास बुझाली॥
सर्वमौलिक अधिकार सुरक्षित
विशाल चतुर्वेदी " उमेश "
जबलपुर मध्यप्रदेश
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