सोमवार, 6 जुलाई 2020

विशाल चतुर्वेदी उमेश

  वर्षा ऋतु
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 वर्षा ऋतु की  बात निराली । 
सबने अपनी प्यास बुझाली ॥ 
सारे    ताल    तलैया  भीगे । 
आँगन और अंगनइया भीगे । 
झूम रही   है    डाली   डाली ॥ 

 वर्षा ऋतु की  बात निराली । 
सबने अपनी प्यास बुझाली ॥ 
मेंढकों ने ली है मीठी तान । 
पपीहे ने गाया मीठा गान । 
किसानों की आयी दिवाली ॥ 

 वर्षा ऋतु की  बात निराली । 
सबने अपनी प्यास बुझाली ॥ 
मेघों  ने  उपहार  दिया  है । 
वसुन्धरा ने शृंगार किया है । 
प्रकृति ने ओढ़ी चादर , हरियाली ॥ 

 वर्षा ऋतु की  बात निराली । 
सबने अपनी प्यास बुझाली॥  

सर्वमौलिक अधिकार सुरक्षित 
   विशाल चतुर्वेदी " उमेश "
       जबलपुर मध्यप्रदेश

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