सोमवार, 6 जुलाई 2020

नेहा सोनी सनेह

*बरसो बदरा*
घुमङ-घुमङ घन बरसो बदरा 
अब तो जल वरषाओ।।।।
तपती धरती सूखे पोखर
सबकी प्यास बुझाओ।।।।
खिले कुमुदनी जंगल की
मयूर तिनक धिन नाचे।।
दामिणी की चमक ताल पर
बदरा ढोलक बनकर बाजे।
सिंधु भी सागर से मिलने 
कल-कल करती भागे।।
वरषाने की राधा बनकर 
हर बाला कृष्ण अलापे।
सजनी-साजन के सूखे प्रेम में
सागर सी ठंडक आये।।
सरस मिलन हो अबनि-अम्बर का
धरती चहक-महक खिल जाये
            
--नेहा सोनी'सनेह'✨🦋

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