मंगलवार, 7 जुलाई 2020

शिखर चंद्र जैन

शिखर के दोहे 

समता भाव विवेक जो ,धारण करता नेक ।
 विनय भाव भी हो" शिखर ", बिन पर उड़े स्वमेव  ।।
करें क्रोध और ईर्ष्या ,हो न विनय विवेक ।
ईंधन अगनी बिन "शिखर " ,जल जाये स्वमेव ।। 

वाणी से मीठी नहीं , कोई जग में होय । 
यह ऐसी औषधि "शिखर " , रोग कभी ना होय ।। 

तर्क वितर्क करो नहीं , मन को लो समझाय । बोलचाल रखियो "शिखर " ,पुनः बात बन जाए ।। 

सकारात्मक सोच को , दीजे सदा बढ़ाय । 
पीछे की भूलो " शिखर ",आगे की चित लाय ।। 

चिता नहीं चिंता बड़ी ,कह गए पहले लोग । 
चिंता से क्या हो "शिखर " , कर्मों का फल भोग ।। 

जितना जिसके भाग्य में ,उतना पैदा होय ।
वर्षा या सूखा "शिखर " ,बन जाते हैं योग ।।
 
सुख दुख छाया धूप है , "शिखर "सदा  न होय । घटे बढ़ै होवे खतम , छुपत प्रकाशक दोय ।। 

बाँटे से बढ़ जात है ,घटत छुपाये जान ।

ज्ञान निधि ऐसी "शिखर " , मिले उच्च स्थान ।। 

बहता पानी शुद्ध है ,थमत अशुद्धि होय। 
आये जाये दौलत "शिखर "सुख का कारण होय ।।

रचनाकार - शिखर चंद जैन" शिखर " गंजबासौदा 9425615029     7999184370

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