शुक्रवार, 10 जुलाई 2020

सतीश दीक्षित किंकर

आदरणीय गुणीजन,त्रुटि सुधार कर स्नेह सिंचित करें।सादर।
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राम की माया अपरंपार।
वही है सचराचरआधार।
कभी नहिं होय विधाता बाम।
अगर सब जपें राम का नाम।
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ज्ञान में गर्भ हमेशा होत।
प्रेम में भगत स्वयं जग स्रोत।
विषय से हटो छोड़ दे भोग।
चरण हरि झुको तुरत हो योग।
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 भक्ति रस डूब जाँय नर नार।
अवसि फिर पाँय पदारथ चार।
ईश तब उसको दें सद ज्ञान।
 धरा पर सुखी उसी को मान।
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डगर है प्रेमहिं सरल सपाट।
युगल छवि लखि कर बंद कपाट।
 जगत पति केवल रघुवर राम।
 दया के अक्षय पावन धाम।
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(सतीश दीक्षित किंकर) ०९/०७/२०२०गुरुवार।

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