आदरणीय गुणीजन,त्रुटि सुधार कर स्नेह सिंचित करें।सादर।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
राम की माया अपरंपार।
वही है सचराचरआधार।
कभी नहिं होय विधाता बाम।
अगर सब जपें राम का नाम।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
ज्ञान में गर्भ हमेशा होत।
प्रेम में भगत स्वयं जग स्रोत।
विषय से हटो छोड़ दे भोग।
चरण हरि झुको तुरत हो योग।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
भक्ति रस डूब जाँय नर नार।
अवसि फिर पाँय पदारथ चार।
ईश तब उसको दें सद ज्ञान।
धरा पर सुखी उसी को मान।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
डगर है प्रेमहिं सरल सपाट।
युगल छवि लखि कर बंद कपाट।
जगत पति केवल रघुवर राम।
दया के अक्षय पावन धाम।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
(सतीश दीक्षित किंकर) ०९/०७/२०२०गुरुवार।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें