*चंद अश़आर*
***
*खुद लाचार आइना वो शक्ल क्या दिखाएगा।*
*अंधों के शहर में कैसे वो परचम फहराएगा।*
*
*जिस आइने में मुस्तकिल गर्द का गुबार हो,*
*बाज़ार में वो खुद को कैसे आजमाएगा।*
*
*लाचार आइना बेकार आइना जो हो गया कभी,*
*तारीकियों के गर्त में वो डूब जाएगा।*
*
*ज़िन्दा रहा तो बोलेगा अश़आर आइना,*
*मरहूम ग़र हुआ तो ज़ख्म दे के जाएगा।*
*
*बेहूदगी की शक्ल पे जब बोलेगा आइना,*
*शोहरत के बादशाह को तारे दिखाएगा।*
***
*प्रदीप ध्रुवभोपाली भोपाल मध्यप्रदेश,09/07/2020*
*******
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें