शुक्रवार, 10 जुलाई 2020

कृष्ण मुरारी लाल मानव

भारतीय साहित्य सृजन मंच की प्रतिष्ठा में। 

नफरतों की आग में चहुँ ओर शरहद जल रही है। 
मन ब्यथित है नेह के नगमे भला कैसे सुनाऊँ।। 

भारती के भाल को कोई सिर फिरा मांगता है। 
अब तो वो इंसानियत की सारी सीमा लांघता है। 
खून का प्यासा बना सीमा पे द्वंद्व मचा रहाहै। 
नफरतों का जहर फैलाकर के देश जला रहा है। 
ईर्ष्या के ताप से झुलसी कली कैसे खिलाऊं।
मन ब्यथित,,,,,,, 
कोई भाषा वर्ण वर्ग नित्य जता रहा है। 
मधुरिमा संस्कृत सुता हिन्दी में द्वेष बता रहाहै। 
जिसने देश की सभ्यता संस्कृति को दूषित कर दिया है। 
तज दिये संस्कार अपने बिष दिलों में भर दिया है। 
हिन्दी के मांथे  की बिंदी कृष्ण कैसे फिर सजाऊँ। 
मन ब्यथित,,,,,,,,,
अब यहाँ पर भ्रष्टता जन जन को पीड़ित कर रही है। 
खादी टाई साथ जब फिर वो भला क्यों डर रही है। 
दीन हीन किसान के फांसी गले की बन रहीहै। 
साथ खाकी का मिला होकर निडर वो तन रहीहै। 
कृष्ण है अंधेर नगरी पीड़ा किसको मैं बताऊँ। 
मन ब्यथित है नेह के नगमे भला कैसे सुनाऊँ।। 

कृष्ण मुरारी लाल मानव रामनगर एटा

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