*आल्हा छंद*
द्वितीय प्रयास...........
महाभारत-द्रोपदी चीरहरण प्रसंग
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श्री गुरुवर की करो वंदना,
मां शारद को शीश झुकाय।
बाधा विघ्न हरो सब मेरे,
श्रीगणपति को ध्यान लगाय ।
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महाभारत की भव्य कथा,
कहती तुमसे अपना जान।
आन-बान और शान भरी
गुण-दोषों की अद्भुत खान।।
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जाल बिछाकर द्युत क्रीड़ा को
पंडाब हस्तिनापुर लिए बुलाय
राजभबन में भीष्म द्रोण के सन्मुख चौसर लई जमाय l
पांडव कौरव खेलन बैठे
मन की बात कहीं न जाय l
पांडव मन के सीधे साँचे,
दुर्योधन को समझ न पाए l
कपटी शकुनी पांसे फैंके,
पांडव चाल उल्टी पड़ जाए l
युधिष्ठिर राजपाट सब हारे ,
तब चारयों भईया दये गँवाय ।।
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लज्जा छोड़ी धर्मराज ने
पांचाली को दिया गंवाय।
द्रुपद सुता को भरी सभा में,
तब दुर्योधन लिया बुलवाय।।
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दुष्ट दुशासन की करनी लख,
द्रोण,भीष्म सब नैन झुकाए।
विकर्ण महारथी ने जब उठ कर,
भरी सभा खों दयो थर्राय।।
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हार जीत के खेल-खेल में,
कुल मर्यादा क्यों विसराय।
करके नारी को अपमानित,
तुमको लाज तनक ना आए।।
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फिर द्रोपदी ने अंतर्मन से,
जब गोविंद को लियो बुलाए।
दौड़े-दौड़े गिरधर,आए
रक्षा कीन्ही चीर बढ़ाएं।।
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जय हो स्वामी नारायण की ,
सबकी बिगड़ी देय बनाएं।
रचना छंद मोहे नहीं आवत,
भूल चूक सब लिओ दबाय।।
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मौलिक और अप्रकाशित
दिनांक- 9 जुलाई,2020
पुष्पा शर्मा
ग्वालियर,मध्य प्रदेश
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