सोमवार, 13 जुलाई 2020

किशोरीलाल जैन

किशोरी लाल जैन
बादल की कलम से मुक्तक 

जिन्हें ने पाला जी ने पोसा जिन्हें गोदी खिलाया है 
वही अब हो रहे जालिम जिन्हें चलना सिखाया है 
है यह रिश्ते खून के लेकिन नहीं लगते भरोसे के 
हंसाते ही रहे जिनको उन्ही सब ने रुलाया है

गुलामी का तजुर्बा तो हसीनों से मिलता है
बना कर देख लो जोरू मर्द पीछे  ही चलता है 
जो कहती है वही करता सभ्यता आज रोती है
 तभी तो गीत बादल का जमाने को अखरता है

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