अपनी अना को और वज़नदार कर दिया
मक़तल में घुड़सवार बचा था मैं आख़िरी
फिर हौसला समेट के यलगार कर दिया
ख़रगोश बहुत तेज़ था इस बार रेस में
कछुए ने फिर भी उसको शर्मसार कर दिया
लहरों ने पहले किश्ती को सर पे उठाया फिर
इस पार कर दिया कभी उस पार कर दिया
कोई भी दौर हो यही जीने का है उसूल
इक़रार कर लिया कभी इनकार कर दिया
दिल मे तेरी यादों की घुटन थी उसे हमने
बाहर निकाला, कमरा हवादार कर दिया
यारों शिकस्तगी की मुसलसल बहार ने
बरबादियों का मुझको वफ़ादार कर दिया
डॉ आदर्श पाण्डेय
29 रोशनगंज
शाहजहाँपुर, उत्तर प्रदेश

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