गुरुवार, 16 जुलाई 2020

बहाती मंद सी ख़ुश्बू पवन है । सुमेरु छंद

सुमेरु छंद
122 212, 221 22

बहाती मंद सी ख़ुश्बू पवन है ।

उठाती पीठ पे चींटी बजन है ।
बहाती मंद सी ख़ुश्बू पवन है ।

समा लेता नदी पूरी समंदर ।
नचे झूमे  करे मस्ती कलंदर ।

पिया की याद फिर मुझको सताती ।
बदन में आग फिर आकर लगाती ।

महीना आ गया सावन सुहाना ।
जवानी चाहती उस पर लुटाना ।

मिलन की आस में अँखिया खुलीं हैं ।
शयन सैया बिछी चादर धुलीं हैं ।

बसे जब से पिया परदेश जाकर ।
तसल्ली कर रही संदेश पाकर ।

टलेगा युद्व तो छुट्टी मिलेगी ।
चमन में फिर कली जूही खिलेगी ।

अचानक छिड़ गया जब युद्ध भारी ।
लड़े जमकर लगा जब शक्ति सारी ।

बचाई आन फिर अपने वतन की ।
गयी पर जान तब बाँके सजन की ।

तिरंगे में लिपट वो  लौट आए ।
मुझे सम्मान अब कितने दिलाए ।

तिरंगे से लिपट सोया करूंगी ।
उन्हीं की याद में खोया करुँगी ।

बड़ा होकर बने बेटा सिपाही ।
करे वो  शत्रु की भारी तबाही ।

यही सपना सदा देखा करुँगी ।
वतन को सौंप कर बेटा मरूँगी ।

अवधेश सक्सेना -16072020

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

वासुदेव अग्रवाल नमन जी द्वारा सवैया विधान

 वासुदेव अग्रवाल नमन तिनसुकिया ने सवैया छंद का विधान बहुत ही सरल तरीके से समझाया है । सवैया छंद विधान सवैया चार चरणों का वार्णिक छंद है जिसक...