रोशनी के घरों में अंधेरे मिले
धुंध का शाल ओढ़े सवेरे मिले
इस तपन में परिंदे कहां जाएंगे
आंधियों से बिखरते बसेरे मिले
फूल की क्यारियों में जहां तक गई
सिर्फ कांटों के जंगल घनेरे मिले
प्यार के गीत जिनके लिए थे लिखें
वह मिले भी तो आंखें तरेरे मिले
सूखकर ठठरियों सी पड़ी है नदी
मछलियां खोजते कुछ मछेरे मिले
वह डसे वह डसे किस तरह से बचें
सांप से भी विषैले सपेरे मिले... निभा चौधरी आगरा ✍️✍️
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