मंगलवार, 7 जुलाई 2020

निभा चौधरी

रोशनी के घरों में अंधेरे मिले
 धुंध का शाल ओढ़े सवेरे मिले
 इस तपन में परिंदे कहां जाएंगे
 आंधियों से बिखरते बसेरे मिले
 फूल की क्यारियों में जहां तक गई
 सिर्फ कांटों के जंगल घनेरे मिले
 प्यार के गीत जिनके लिए थे लिखें
 वह मिले भी तो आंखें तरेरे  मिले
 सूखकर ठठरियों सी पड़ी है नदी
 मछलियां खोजते कुछ मछेरे मिले
 वह डसे वह डसे  किस तरह से बचें
 सांप से भी विषैले सपेरे मिले... निभा चौधरी आगरा ✍️✍️

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