शुक्रवार, 10 जुलाई 2020

आदित्य सिंह कश्यप कविराज

प्रीत की धार पर एक गीत लिखा,तो इस गीत को बोलो गा पाओगे
 प्रीत में यू जुदा रीत चलता तो है,तो इस 
रीत को क्या मिटा पाओगे
 मैं अकेला सही हलाहल पीता रहा ,क्या हलाहल को अमृत बना पाओगे 
प्रीत की धार पर एक गीत लिखा, तो इस गीत को बोलो गा पाओगे


जिनको चाहे थे हम खुद से अधिक
जिनको माने थे हम खुदा से अधिक 
दर्द देकर गए पर दुआ भी दिए
 क्या दुआ को दवा बना पाओगे
प्रीत की धार पर एक गीत लिखा,तो इस गीत को बोलो गा पाओगे


यू तुम्हारे सिवा इस दिल में भी ,
एक मूरत भी है जो कई जन्मों से मेरे साथ है 
दूर होकर भी हम दूर हो ना सके,
 हम दोनों के बीच वो अमर गांठ है
प्रीत की धार पर एक गीत लिखा,तो इस गीत को बोलो गा पाओगे


हम तो दुनिया से भी इनकारे हुए 
प्रेम के जंग में भी हां हारे हुए 
ये जो जीवन भी अब हारा जा चुका, इस जीवन को जीत सिखा पाओगे
 प्रीत की धार पर एक गीत लिखा, तो इस गीत को बोलो गा पाओगे 

कवि= आदित्य सिंह कश्यप "कविराज"
( सिवान, बिहार)

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