बँधी हुई आँखों पर पट्टी
अब तो साथी खोलो।
इसका,उसका मत बाँचो तुम,अपने मन की बोलो।
नहीं समय यह धृतराष्ट्र का, और न ही संजय का।
करना है उद्घोष स्वयं ही,
अपनी हार विजय का।
जीवन पथ की कर्म-तुला पर, आज स्वयं को तोलो।बँधी हुई आँखों पर पट्टी,अब तो साथी खोलो।
सूर्य,चंद्र पर ग्रहण लगा है,
लौट आए हैं कंस,दुशासन।
तम की जय जयकार हो रही,मरा नहीं है अब भी रावण।स्वीकार नहीं बारूदी दहशत,मुँह तोप का खोलो।
बँधी हुई आँखों पर पट्टी अब तो साथी खोलो।
इसका उसका मत बाँचो तुम,अपने मन की बोलो।
एक वतन है,एक गगन है,
अपनी एक धरा है।
किसने इनके संकल्पों में
शक का ज़हर भरा है।
मन की उर्वर वसुंधरा पर,
बीज प्रेम के बोलो।
बँधी हुई आँखों पर पट्टी,अब तो साथी खोलो।
डॉ.सुषमा जादौन,भोपाल।
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