सोमवार, 13 जुलाई 2020

नाथू लाल मेघवाल

मृत्यु भोज पर कुछ दोहे -समीक्षार्थ

1
मृत्यु भोज करना नहीं, कहे समय का ज्ञान। 
छोड इसे सब दीजिए, एक बुराई जान।
2
गिरवी रखे जमीन को, करे जो मृत्यु भोज। 
दबे कर्ज के बोझ से, मरता फिर हर रोज। 
3
खर्च मरे का व्यर्थ है, मृत्यु भोज हो बंद। 
फिर भी लोग न मानते,करते होकर अन्ध।
 4
मृत्यु भोज करना पड़े, देखा देखी आज। 
रोक लगी सरकार की,हम सबको हैं नाज। 
5
मृत्यु भोज को हम करें, सब प्रतीक के रूप। 
खर्च घटे सबका भला, बनकर रीत अनूप।
6
जो मरना था मर गया, खर्च बाद में व्यर्थ। 
जीवन भर होता रहे, उसके संग अनर्थ।
7
जिस घर में मातम रहे, उस घर लगता छोक। 
यह कुप्रथा बहुत बड़ी, लगे तुरत ही रोक।
8
मृत्यु भोज अब बंद हो, हो जागरूक लोग। 
जिस घर में कोई मरा, कैसे भाता भोग।
9
जब तक जीवित था मनुज, करे न सेवा खूब। 
किया मृत्यु पर भोज फिर, गये कर्ज में डूब। 
10
मृत्युभोज करना पड़े, परंपरा की आड़। 
दबता नीचे बोझ के, पड़ता टूट पहाड़।

रचना मौलिक और अप्रकाशित

नाथूलाल मेघवाल बारां राज.।

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