जिंदगी की राह में ,हो रहा मगरूर कितना।
कुछ बरस की जिंदगानी,क्यों रहा तू भूल इतना।
पर हितों के काम कर तू,, पुण्य! कुछ कर ले जरा क्यों पड़ा है झंझटो में ,कुछ अपना भी कर भला।
यह नहीं कहता मैं बंधु, कि मोह ,माया छोड़ दो। बंधनो से युक्त हैं हम, कर्तव्य से मुंह मोड़ लो।
द्ववेश ,कपट ,छल,भावना से , दूर रहना है हमें।
निज स्वार्थ से हो दुख किसी को, बस कष्ट नहीं देना हमें।
प्रभु की भक्ति सि खाती ,प्यार लो और प्यार दो। प्रेम से जीवन कटे और, कुछ जिंदगी का सार हो। सम्मान सबका कर सको तुम ,और मीठे बोल हो। हर जुबां पर नाम तेरा ,बस हीरा अनमोल हो। जिंदगी क्या चीज है, ना समझ पाए अभी
श्मशान में सब बैठकर ,परिभाषा देते सभी
बसंत श्रीवास्तव शिवपुरी मध्य प्रदेश।
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