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*मेरे_भारत!*
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मेरे भारत!मेरे भारत! मेरे भारत! मेरे भारत!
मेरे भारत! मेरे भारत! मेरे-मेरे मेरे-भारत!
मेरे भारत! सन्तानों ने तुझको कितना है दीन किया।
तेरे समान था कौन देश, तुझको कितना बलहीन किया।
यद्यपि तेरे कुछ चिह्न शेष हैं उठे हुए सबसे ऊपर।
अब भी लहराती है तेरी ध्रुव धर्म-ध्वजा सारी भू पर।
तेरे विकास का हुआ ह्रास, तेरा स्वर आज हुआ आरत।
मेरे भारत मेरे भारत मेरे-मेरे-----------!
लग रही आग नन्दन-वन में , सब खड़े-खड़े मुस्काते हैं।
कुछ धूम दिखाई देती है फिर फूँक-फूँक धधकाते हैं।
हो रहा वामपन्थी नर्तन खुलकर तेरी अँगनाई में।
विष घोल रहे हैं गुप्त-व्याल तेरी मञ्जुल-मधुमाई में।
रोता है गेहूँ भाल पीट जलते जाते खलिहानों में।
चीखती कुदालों का स्वर सुनता कौन ढही चट्टानों में?
जो राष्ट्र-मान है गौरव है उसकी विक्षुब्ध कहानी है।
जी रही अभावों में कितनी यह जलती हुई जवानी है।
सज रहा पुनः मीना-बजार, पृथ्वी-दयिता लुट रही आज।
राणा-भामा हो गये मौन, सो रहा हाय मेरा समाज।
बढ़ रहे दस्यु सो रहा पुण्य मर रहे सिपाही बार-बार।
भारत-माता! तेरा आँचल हो रहा अहर्निश तार-तार।
माता के आँचल में पलते जयचन्दों को कर दो गारत ।
मेरे भारत मेरे भारत मेरे-मेरे ------------------!
अब कहाँ गये निज देश-धर्म पर हँस-हँसकर मरने वाले?
अब कहाँ गये ललकार देश में बार-बार भरने वाले?
अब कहाँ गये वह सन्त क्रान्ति का महारोर करने वाले?
अब कहाँ गये बलिदान-सिन्धु में बिना तरी तरने वाले?
अब कहाँ आन पर घास-मधुकरी खा सहास रहने वाले?
अब कहाँ गये निज वक्ष अड़ाकर तोपों से दहने वाले?
हिटलर ने जिसके साहस को पूजा युग-धर्मा कहाँ गया?
शेखर की वह पिस्तौल और गाँधी का चश्मा कहाँ गया?
बल गया हाय! वैभव अशेष, जल गया भारती का सुभाग।
बँट गया देश, कट गया देश, लुट गया देश, केसरी! जाग!
जागो हिमवान! हिन्द-सागर! जागो गङ्गे! तेरा समाज,
युग-युग का सिञ्चन हुआ व्यर्थ , मरुथल-अकाल पड़ गया आज।
वीरो! दो बहा शोण अपना, होने दो पुनः महाभारत।
मेरे भारत मेरे भारत मेरे-मेरे मेरे-भारत!
★★★★★
*यतीश अकिञ्चन*
(बुलन्दशहर, उत्तर प्रदेश)
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