सोच से नफ़रत निकल कर जो गई ।
पाप तब गंगा हमारे धो गई ।
जागना था रात को भी साथ में,
नींद उसको आ गई वो सो गई ।
आपके इस नूर ने जादू किया,
रूह मेरी आप में ही खो गई ।
जब ज़रा घूंघट उठाया आपने,
रोशनी चारों तरफ़ तब हो गई ।
ये सियासत ही हुकूमत के लिए,
बीज नफ़रत के यहाँ पर बो गई ।
अवधेश सक्सेना -18072020
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