वृक्ष (पर्यावरण) चालीसा
दोहा
विश्व दिवस पर्यावरण, प्राणिजगत से नेह ।
अग्नि,मेघ,जल,वायु,क्षिति, गढ़ते मानव देह ।।
पाँच जून इक दिवस विशेषा । बिना वृक्ष जीवन अवशेषा।।
पादप प्राण वायु दिलवाएं । जल जीवन आधार बनाएँ।।
वृक्ष धरणि अनुपम श्रृंगारा । भेंट देहि जन विविध प्रकारा।।
रंग बिरंगे पुष्प नित पाते । सुन्दर सरस आँगन महकाते।।
सबसे मधुरम फल हम खाते । वह सब कानन से है आते।।
धूप ताप जब अति कर जाई । तरु पल्लव छाया मन भाई।।
जो भी नित नित पेड़ लगावे । उस भू पर अकाल ना आवे।।
बिन तरूवर वर्षा नहीं होई । चाहे लाख जतन कर कोई।।
नदियां कल-कल करती जाती । धरती हरी-भरी हो जाती।।
अब न करो तुम इसका शोषण । फैला है अब घोर प्रदूषण।।
वैश्विक उष्णता है बहु भारी । वृक्ष लगाकर बन हितकारी।।
स्वार्थ भाव से वन को काटा । प्रकृति मार रही बहु चाटा।।
पहले किया इसका बहु भक्षण । आओं मिलकर करे संरक्षण।।
सब जन इक-इक वृक्ष लगाएं । हम सब से संकल्प कराएं।।
परम सुखी हो सब जन देशा । रहे निरोग न हो कछु क्लेशा।।
वृक्ष हमारे जीवन दाता । यही हमारे भाग्य विधाता।।
माता अब है हमें बुलाती । पेड़ लगा कर करो प्रभाती।।
अब न करो कोई अपराधा । मिलकर दूर करें यह बाधा।।
कहती हमें सभी सरकारें । जागों, उठो, लगाओ नारे।।
इस धरती का कर्ज चुकाओ । हर शुभ दिन पर वृक्ष लगाओ।।
संभल जाओ सब नर नारी । फिर जीवन ना होय दुखारी।।
विपदा कर देगी जब धावा । धरती ताप प्रबल बढ़ जावा।।
ए.सी. फ्रिज ना कछु कर पावें । दिन दिन वृक्ष अगर कट जावें।।
दूषित द्रव्य बढ़े निस दीन्हा । तह ओज़ोन में छिद्र कीन्हा ।।
दंड न देई कोई शासन । जो खुद पर राखे अनुशासन।।
वृक्ष लता मन को अति भाते । कंद मूल फल औषधि पाते ।।
गरजे तब तब घन अतिभारी । धरा वधू सी लागे प्यारी ।।
जब जब बढ़त जात जनसंख्या। तेहि विधि घटत पादप संख्या।।
बिन पेड़ों के मेघ न बरसे। पेड़ लगे तो हम ना तरसे ।।
जीव जन्तु पशु पंछी सारे। विचरण करते तेरे द्वारे ।।
काज करो जनहित उपकारा । मिले जीवन तब सुख अपारा।।
सादर नमन सहित जो ध्यावे । धन दौलत से घर भर जावे।।
निस दिन इनको नीर पिलाता । विटप छाँव फल प्रसून पाता ।।
पवन शुद्ध पातें दिन राता । जय हो वृक्ष सकल सुख दाता ।।
वृक्ष देव को पुष्प चढ़ावे। अपना क्या जो भोग लगावे।।
रोजी रोटी सबको देता । हमसे यह कछु नाही लेता ।।
अहोभाग्य है जीवन मेरा । निस दिन पाता दर्शन तेरा।।
जो पढ़े पर्यावरण चालीसा। सब विधि शुभकारी गौरीसा ।।
इक दिन भी हम भूल न पावा । हर पल वृक्ष ध्यान में लावा।।
"कमल" सभी को यही बतावे । वृक्ष लगावें प्राण बचावें।।
दोहा
कहत कमल सबसे यही, मानव पेड़ लगाय ।
सब प्रसन्न सब पर कृपा, माँ प्रकृति कर जाय ।।
©कमलेश शर्मा "कवि कमल"
मु. पो.-अरनोद, जिला :- प्रतापगढ़ (राज.)
मो.9691921612
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें