कविता किसान की....
सच्चे सपूत धरा के
किसान तुम न होते
मुश्किल में होता जीवन
महान तुम न होते.....
सपनों को संजोकर
धरा का श्रंगार कर दिया
लहलहाते खेतों में
कितना प्यार भर दिया
मंथन कर धरा का
रस सबको पिला दिया
जवान बन उठा तो
दुश्मन को हिला दिया
जवान से पहले वसुधा का
ऋण उतारते हो
गोपाल बनके तुम ही
जग को संवारते हो
सीखें कोई तुमसे
धरती से प्यार करना
सीख कोई तुमसे
धरती पे जीना मरना
खून पसीने से अपने
मिट्टी को सना दिया
पढ़ा लिखा कर भारत को
इंडिया बना दिया
क्या होता हमारा यदि
फसलें तुम न बोते
मयूर भी न नचता गाता
मेघ भी बरसते न रोते
सच्चे सपूत धरा के
किसान तुम न होते
मुश्किल में होता जीवन
महान तुम न होते......
पं. सुदामा
गुना मध्य प्रदेश
९९९३०८९८२०
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