आज की परिचर्चा
विषय
हमारी आवश्यकता धर्म नहीं विज्ञान है ।
विषय पर नजर पड़ी तो लिखने का विचार आया, विषय ने सोचने पर मजबूर किया । हमारी आवश्यकता धर्म या विज्ञान पर चर्चा तो आगे की बात है, हमारी आवश्यकता क्या होनी चाहिए, इस पर विचार करें तो आवश्यकता की श्रेणी में तो रोटी, कपड़ा और मकान आते हैं, कुछ और जोड़ें तो स्वास्थ्य, शारीरिक सुख, शिक्षा, परिवार, समाज भी आवश्यक हैं । धर्म और विज्ञान में किसकी आवश्यकता है, इस प्रश्न से ऐसा लगता है कि जैसे धर्म और विज्ञान एक दूसरे के विपरीत हैं । आम चर्चा में भी ऐसा सुनने में आता है । विज्ञान की प्रगति और विज्ञान के चमत्कारों से प्रभावित कई लोग धर्म से ऊपर विज्ञान को रखते हैं, जबकि कई लोग धर्म के पक्ष में विज्ञान को बेकार बताते हैं । विज्ञान के महत्व को कभी भी कम नहीं किया जा सकता, लेकिन विज्ञान क्या है, इसका मूल कहाँ है, किस तरह के ज्ञान को विज्ञान कहते हैं, ये समझने की आवश्यकता है । धर्म के ऊपर विज्ञान को रखने से पहले धर्म को भी समझने की आवश्यकता है, जिसे धर्म कहा जाता है या समझा जाता है, क्या वही धर्म है, धर्म का मूल कहाँ से है, इसके मूल तत्वों की विवेचना पर क्या अर्थ निकलता है, यह समझना होगा ।
मेरे विचार से धर्म केवल पूजा, पाठ, प्रार्थना, दर्शन, हवन तक सीमित नहीं है । धर्म तो प्रकृति है । प्रकृति का अर्थ स्वभाव भी है, फूल का स्वभाव है, खुश्बू फैलाना, इसी तरह हर जीव, निर्जीव का अलग अलग स्वभाव होता है, यानि प्रकृति या धर्म होता है । इसी तरह मनुष्य का भी धर्म है जीवों की रक्षा करना, दूसरों के काम आना, अपने आपको अच्छा बनाना, अपनी बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए संसाधन जुटाना, मनुष्य प्रजाति के संरक्षण के लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहना, मनुष्य अपने इसी धर्म को निभाने के लिए खोजपरक कार्य निरन्तर करता रहता है, इन्ही क्रमबद्ध कार्यों को करते हुए नए आविष्कार करता है, इसी प्रक्रिया को विज्ञान कहते हैं ।
स्पष्ट है कि अपने धर्म को निभाने के लिए निरन्तर किए जाने वाले नए कार्य ही विज्ञान हैं ।
प्रश्न इसलिए सामने आया है कि विज्ञान के नियमों के पालन को जिस तरह से अपनाया गया वो अंध विश्वास की तरह नजर आते हैं, इनका विकृत रूप अंध विश्वास ही है ।
ताजा उदाहरण से समझें, विज्ञान ने कहा कि कोविड नाम का एक खतरनाक वायरस है जो मनुष्य से मनुष्य को तेजी से संक्रमित कर देता है । इसके संक्रमण के खतरे भी बता दिए, लोगों में भय व्याप्त हो गया, जांचें होने लगीं, दवाइयों और प्रतिरोधक टीके बनने लगे, नाक मुंह ढंकना अनिवार्य कर दिया,थूकना प्रतिबंधित कर दिया । पूरी दुनिया मानने लगी, वायरस को किसी ने अपनी आंखों से नहीं देखा । मास्क लगाकर लोग समझने लगे कि अब वो इससे बच जाएंगे । ताबीज की तरह हर व्यक्ति अपने कानों में मास्क को लटकाने लगा । अल्कोहल और साबुन का उपयोग करने लगा, हाथ मिलाना, गले मिलना बंद हो गया । अगर देखा जाए तो विज्ञान का सहारा लेकर जो बातें प्रचारित की गईं, वो भी तो अंध विश्वास की तरह फैलीं । अपने निजी स्वार्थों के लिए विज्ञान का सहारा लेकर पूर्व प्रचलित धार्मिक आस्थाओं, परंपराओं, मान्यताओं को झुठलाते हुए नई मान्यताएं बना दीं गयीं, ये नई आस्थाएं, नई मान्यताएं भी एक नए धर्म की ही तरह हैं ।
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी, ईसाई आदि जिन्हें धर्म माना जाता है इनका जो सार है वो एक ही है कि मानव का धर्म निभाना और इस धर्म को निभाने के लिए निरन्तर क्रमबद्ध विकासपरक शोध करते हुए नए आविष्कार करना, जो कि विज्ञान है ।
विज्ञान धर्म का एक साधन मात्र है, इसकी आवश्यकता धर्म के लिए ही है ।
अवधेश सक्सेना
03072020
शिवपुरी मध्य प्रदेश
9827329102
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